संत कबीर की महिमा

There are five levels of spiritual awareness

Level 1

Jeev (जिज्ञासु)

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े , बहुरि न लागे डार ॥ 205 ॥

भगति बिगाड़ी कामियां , इन्द्री केरै स्वादि ।
हीरा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि ॥ 276 ॥

पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय ।
अब के बिछुड़े ना मिले , दूर पड़ेंगे जाय ॥ 213 ॥

अच्छे दिन पाछे गए ,हरी से किया ना हेत      अब पछताए होत क्या,जबचिड़िया चुग गई खेत।।

मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।
बार-बार के मुड़ते , भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ 220 ॥

बार-बार की मूडते भेड़ बैकुंठ न जाए

Level 2; Surat (सूरत)

मथुरा भावै द्वारिका, भावे जो जगन्नाथ ।
साधु संग हरि भजन बिनु , कछु न आवे हाथ ॥ 224

बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय ।
कर संगति निरबन्ध की , पल में लेय छुड़ाय ॥ 215

हाँसी खैलो हरि मिलै, कौण सहै षरसान ।
काम क्रोध त्रिष्णं तजै , तोहि मिलै भगवान ॥ 264 ॥

कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुत जो भीत ।
जिन दिल बांध्या एक सूं , ते सुख सोवै निचींत ॥ 272 ॥

Level 3 ; Shabd (शब्द)

माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश ।
जा ठग ने ठगनी ठगो , ता ठग को आदेश ॥ 221 ॥

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भागत के पीछे लगे , सन्मुख भागे सोय ॥ 223 ॥

राम नाम चीन्हा नहीं, कीना पिंजर बास ।
नैन न आवे नीदरौं , अलग न आवे भास ॥ 229 ॥

बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए (हरि)राम ।
कहा काज संसार से , तुझे धनी से काम ॥ 217 ॥

Level 4 ; Neerat ( नीरत)

चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोई

पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़ इससे तो चक्की भली पीस खाए संसार

level 5a

Jaat/ जात

जीते जी

(हरि स्वरूप के द्वारा हरि लोक के दर्शन; निष्काम कर्म व शक्तिपात)

लंबा मारग, दूरिधर, विकट पंथ, बहुमार ।
कहौ संतो , क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि-दीदार ॥ 252 ॥

लकड़ी जल कोयला भई कोयला जल भयो राख । मैं पापी ने ऐसी जली ना कोयला भयों,ना राख।।

(हरि स्वरूप की प्राप्ति)

माली आवत देख के, कलियान करी पुकार ।
फूल-फूल चुन लिए , काल हमारी बार ॥ 225 ॥

सब धरती कारज करूँ, लेखनी सब बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ गुरुगुन लिखा न जाय ॥ 104 ॥

बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय ।
कर संगति निरबन्ध की , पल में लेय छुड़ाय ॥ 21

यह तन जालों मसि करों , लिखों राम का नाउं ।
लेखणि करूं करंक की, लिखी-लिखी राम पठाउं ॥ 254 ॥

सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे ।
दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रौवे ॥ 261 ॥

level 5b

( मृत्यु के बाद)

हरि लोक में ठौर ठिकाना

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाही प्रेम गली अति सांकरी जा मेरी दुई न समाई

साँझ पड़े दिन बीतबै, चकवी दीन्ही रोय ।
चल चकवा वा देश को , जहाँ रैन नहिं होय ॥ 234

दीठा है तो कस कहूं, कह्मा न को पतियाइ ।
हरि जैसा है तैसा रहो , तू हरिष-हरिष गुण गाइ ॥ 267 ॥