समर्थ गुरु हमें अज्ञान से ज्ञान की पांचवी अवस्था तक ले जाता है। पांचवी स्थिति वाला साधक ही समर्थ गुरु का दर्जा पा सकता है।





1.
मूढ मती (हृदय पर ध्यान नहीं लगा पाता)
2.
सुषुप्ति (हृदय ध्यान)

3.
सर्विकल्प समाधि ( ॐ ज्ञान अनुभव)
4.
निर्विकल्प समाधि (परा प्रकाश ज्ञान अनुभव)
5.
निष्काम कर्म / हृदय से हृदय शक्तिपात ( परात्पर व दिव्य प्रकाश का अनुभव ज्ञान)। इस अवस्था में जीने वाला व्यक्ति ब्रह्म स्वरूप, निर्मल निराकार हरि स्वरूप को प्राप्त होता है तथा मरणोपरांत निर्वाण स्थिति का हकदार होता है।

जिन लोगों को जीते जी उनके ब्रह्म स्वरूप के दर्शन नहीं होते वे उन्हें मरने के बाद वापस जिंदा हुआ मानते हैं। हालांकि वह अमरत्व अमृत ब्रह्म हरि स्वरूप को अपने जीवन में ही प्राप्त कर चुके होते हैं तथा मरने के बाद उसी हरि धाम में ठिकाना (ठौर/बैठक ) ठाकुर स्थीति कर लेते हैं ।
ध्यान रहे
अवतार जन्म से ही पांचवें स्थान पर होते हैं इसलिए उन्हें निचले पांच दर्जों से गुजरना नहीं होता लेकिन वह दूसरे, तीसरे, और चौथे दर्जे के दर्शन साधक को उसकी योग्यता के अनुसार करवाते हैं। इसलिए साधकों के अनुभव भी नाना प्रकार के हो सकते हैं।
ना कुछ किया न कर सका,
ना कुछ किया शरीर,
जो किया सो हरि किया
सब कहत कबीर कबीर


समर्थ गुरु महिमा अपरंपार।
जय गुरु हरी।
Let THOU light shine through us, we THOU childern O’ LORD. God is one senior human who has achieved the DIVINE Glow matter body before us in their respective life time either from birth itself ( in case of Avatars) or got it in later part of life (Guru). So let us all help each other to join the DIVINE club in our lifetime. Rise and not rest unto realm of Glowhood club. Be the glow, share the glow, Live & let live the Glow (मनि , मणि शरीरा)🙏
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