





रात गंवाई सोय के
दिव्स गंवायो जाग।
निश्चय प्रलय होवेगी
मुसाफिर अब तो जाग।
लालच द्वेष खत्म करें,
हृदय बो ब्रह्म प्रकाश।
तेरी कृपा से सक्ष्म बने,
करें कर्म स्मर्पण सभी।
जिन खोजा तिन पाईया,
ब्रह्म (अल्लाह, डिवाइन) धाम अनमोल।
ब्रह्म नाद , ब्रह्म प्रकाश ले
अपने अंदर खोज साधक।
अपने अंदर खोज।।
बीज मंत्र
पृथ्वी पर जितने भी धर्म है सभी मे दिव्य, डिवाइन, नूरानी, ब्रह्म स्वरूप शरीर को पाने का तरीका छुपा हुआ है।
सभी धर्मों में ब्रह्म नाद ॐ व ब्रह्म प्रकाश ( होली वर्ड ऐमन व होली लाइट; आमीन व नूर) के द्वारा ब्रह्मधाम ( किंगडम ऑफ लाइट; u दरगाह ) तक जीते जी 5 मील के पत्थरों से पहुंचा जाता है।
सनातन हिंदू धर्म
1) जिज्ञासु ,
2)क्षर (विराट, हिरण्यगर्भ, अव्याकृत)
3)अक्षर ॐ (प्रधान ,पुरुष, प्रकृति) 4)परा (आत्मप्रकाश)
5अ)परात्पर/ अवधूत/ निष्काम/स्थितप्रज्ञ/ (जीते जी- ब्रह्म प्रकाश बीज );

5बी) इच्छा पर शरीर छोड़ने के बाद ( निर्वाण, पूर्णब्रह्म, केवल दिव्य शरीर, कैवल्य, विशिष्ट अद्वैत, सबका बीज 🙏)
क्रिश्चियनिटी
1)मानव,
2) सन ऑफ मैन,
3) सन ऑफ गॉड (होली वर्ड आमेन)
4)होली मदर/होली घोस्ट(होली लाइट) 5अ)होली फादर ( जीते जी-पंच प्रकाश);

5बी)इच्छा पर शरीर छोड़ने के बाद ( लॉर्ड, रिसरेक्टेड, सबका बीज 🙏 )
सूफी मत
1)इंसान,
2) लाहुती,
3)हुती (आमीन)
4)हांहुंती (कयामत)
5अ)जाति (जीते जी पांच तज्जलियात)

5बी) बका (सबका मालिक व बीज 🙏)।
चाय का “बीज मंत्र”
जिस प्रकार से “पांच प्रकार की चाय” बनाने की क्षमता हमारे पास तभी आती है अगर हमें “चाय का बीज” या पूर्ण पता मालूम हो।
चाय का बीज मंत्र (5)
1) पानी
2) पत्ती
3) शक्कर
4) दूध
5) मसाला
जिसे चाय बनाने का “बीज फार्मूला” पता है वह नाना प्रकार की चाय बना सकते हैं।
ब्लैक टी,
500 मील की तेज चाय ,
मधुमेह चाय,
अदरक चाय
आदि
चाय वह आत्म ज्ञान प्राप्ति की 5 सीढ़ियां
1) ब्लैक फीकी चाय
2) फीकी दूधवाली चाय
3) तेज पत्ती वाली चाय
4) केवल दूध वाली चाय
5ए) मसाला चाय (जीते जी; निष्काम कर्म व शक्तिपात)
5बी) अमृत ब्रह्म प्रकाश चाय (इच्छा से शरीर त्यागना व निर्वाण के बाद)
ब्रह्म प्रकाश/गुणातीत/निर्गुण/निर्मल/निराकार स्थिति जीते जी
इस दिव्य, निर्गुण ,निराकार , मणिप्रकाश से सृष्टि की हर चीज उत्पन्न होती है। इसलिए ऐसे विशिष्ट अद्वैत स्थिति भी कहते हैं।
इसलिए हमें सर्व शक्तिशाली दिव्य बीज शरीर का ध्यान करना चाहिए,फल का नहीं।
इस दिव्य शरीर की प्राप्ति हमारे से पहले प्राचीन काल में, अन्य शक्तिशाली व्यक्तियों ने प्राप्त की है।

दिव्य शरीर के माध्यम से हमें दिव्य लोक व दिव्य व्यक्तित्व के दर्शन स्वपन में या समाधि अवस्था में हो जाते हैं।
ब्रह्म नाद व ब्रह्म प्रकाश का ब्रह्मधाम से दिशा संबंध
(परग्रही टेक्नोलॉजी नहीं बल्कि सृष्टि चेतन्यता)
ब्रह्म नाद व ब्रह्म प्रकाश की खोज से ब्रह्म धाम (बीज प्रकाश) तक पहुंच

दिशा ज्ञान
🐊, 🐘,🦁🦅,🥣,🐍
वैदिक आकाश ज्ञान।

दिव्य घर का पता
बरगद/ पीपल का पेड़
पेड़ के नीचे साधना में रत अवधूत, दत्तात्रेय
पेड़ की पृथ्वी में जड़ (
पेड़ के पत्ते को सूर्य से जीवन
सूर्य का ब्लैक होल से टिका होना (जंबूद्वीप ब्रह्मांड)
जंबूद्वीप ब्रह्मांड ( मिल्की वे) का विष्णु की नाभि ( ग्रेट अट्रैक्टर) से टीका होना
पेड़, पृथ्वी, सूर्य ; पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र ; आकाश गंगा (जंबूद्वीप/ मिल्की वे) का ब्लैक होल; ईगल (गरुड) नेबुला, बासुकी तारामंडल (सरपैन्ट कौन्सटिलेशन) में आईसी 1101 (पुष्काद्वीप) का ब्लैक होल; ग्रेट अट्रैक्टर का एक सीधी दिशा में होना।

ब्रह्मपुर की दिशा का इशारा; पेड़, पृथ्वी, सूर्य ; मकर (मगरमच्छ) व हाथी जो पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र दर्शाते हैं; गरुड़, वासुकी सांप, अमृत का कल्श (विष्णु सवार) ; ब्रह्मपुर के एक स्थान, क्षीर सागर में, शेषनाग पर बैठे ,लक्ष्मी नारायण।
इस सीधी दिशा का जाईंट अट्रैक्टर वह ब्रह्मपुर से संबंध होता है।


ब्रह्म शरीर की प्राप्ति ;
ब्रह्म नाद की उत्पत्ति
कर्म स्मर्पण
जैसे ही कोई कार्य सामने आए, तो कार्य करने से पहले अपने इष्ट का ध्यान करके कार्य का शुभारंभ करें और कार्य करने के पश्चात कार्य का फल ईष्ट को सौंप दें।इससे अगली अवस्था में ; कार्य करने से पहले, कार्य करते हुए, व कार्य करने के बाद; ईष्ट का ध्यान हृदय में बराबर बनाए रखें।
जैसा खाना खाने से पहले ईष्ट का धन्यवाद करें; खाना खाते समय हर कौर के साथ का नाम ले; और खाना खाने के बाद ईष्ट को खाने की वस्तुएं प्रदान करने के लिए धन्यवाद दें।



ब्रहम प्रकाश की उत्पत्ति
1) शक्तिपात ( पंच प्रकाशमान गुरु व अवतार द्वारा)
दिव्य शरीर की प्राप्ति का सबसे आसान साधन समर्थ गुरु की सेवा है। समर्थ गुरु जो जीते जी आत्म ज्ञान की पांचवी स्थिति को प्राप्त कर लेता है, एक दिव्य शरीर का अधिकारी होता है व शक्तिपात करने में समर्थ होता है। अवतार या पैगंबर बचपन से ही दिव्य शरीर का अधिकारी होता है।


2) दिव्य शरीर का ध्यान;
दूसरा आसाम साधन है दिव्य शरीर की रचना का दिमाग में दर्शन करना।
उठने के बाद, सोने से पहले ।
सबसे पहले हम सफेद प्रकाश, खुली आंखों से देखते हैं।

उसके बाद आंखें बंद करके यह ध्यान करते हैं की सफेद प्रकाश (या ईष्ट के प्रकाश नुमा स्वरूप को) बाहर से हमारे शरीर के अंदर प्रवेश करके हृदय में समा गया है ।

उसके बाद हृदय से धीरे धीरे, हृदय की हर एक धड़कन के साथ, वह पूरे शरीर में सिर में, हाथों में, छाती में, पेट में,कमर में, पैरों में, वह शरीर के रोए रोए में ,समा गया है।

अब हमारा पूर्ण शरीर प्रकाश से दिव्य, निर्गुण, ब्रह्म स्वरूप हो चुका है। धीरे-धीरे यह घूमता हुआ प्रकाश भी फिर फिर फिर स्थिर हो जाता है और पूरी तरह से थम जाता है।

धीरे-धीरे यह प्रकाश सिकुड़ कर फिर वापस हृदय में समा जाता है।

ध्यान की एक प्रक्रिया ऐसे पूरी हो जाती है।
फिर से इस प्रकार प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है।
अंतिम प्रक्रिया होने पर और ध्यान से बाहर आने पर अपने इष्ट का ध्यान, हृदय पर ही समय-समय पर ले जाएं।
दिव्य कर्ण
5 मील पत्थर
इन तीन प्रक्रियाओं के माध्यम से हम धीरे-धीरे 5 मील के पत्थरों को पार कर, दिव्य शरीर में स्थित हो जाते हैं;
1) आम भागदौड़ काम कंचन क्रोध मारपीट लूटपाट लालच की जिंदगी
2) अनुशासित जिंदगी (कर्म व स्मर्पण, दिव्य शरीर का ध्यान)
3) ब्रह्म नाद,ॐ/ अक्षर, प्रणव का उर्धगामी होना,ओंकार, आमीन, आमेन( कुंडलिनी जागरण, त्रिकुटी,कीलक, भृकुटी, सहस्त्रदल कमल, खेचड़ी क्रिया, हृदय)। (विराट दर्शन, आकाशगंगा/ जंबूद्वीप, पुष्करद्वीप,सर्प लोक)
ब्रह्म नाद का उर्धगामी होना
पांच स्थान (अंतःकरण चतुष्ट + पांचवा हृदय)
अंतः करण चतुष्ट
A)मन/ मानस




कर्म इंद्रियां मानस (स्पाइनल कॉर्ड)
ज्ञानेंद्रियां मानस (ब्रेन स्टेम और सैरीबैल्लम; दिमाग का निचला हिस्सा)

B) अहंकार केंद्र
अहंकार केंद्र लिंम्बिक सिस्टम (बीच दिमाग में)
C) बुद्धि
नियोकॉर्टेक्स (दिमाग का सबसे ऊपरी हिस्सा)
D) चित
प्री फ्रंटल कोरटैक्स (दिमाग का सबसे अगला हिस्सा; चित्)
E) हृदय
4) ब्रह्म प्रकाश का बढ़ना,स्वपन में अध्यात्मिक )दर्शन होना। आठ ऐश्वर्या, 14 रत्न की प्राप्ति। (14 लोक, एक विश्व Gr दर्शन,)
5) ब्रह्म प्रकाश में स्थिति (ईष्ट के प्रकाशमान शरीर का दर्शन, प्रकाश लोक, ब्रह्मपुर, गोलोक, क्षीर सागर, वैकुंठ, बद्रि आश्रम आदि व सृष्टि दर्शन; निष्काम कर्म व शक्तिपात व इच्छा से शरीर त्याग (निर्वाण)

आध्यात्मिक प्राचीन वैदिक हिंदू मंदिर व वस्तु कला रहस्य
ब्रह्मपुर की दिशा का इशारा;
पेड़, मनुष्य
पृथ्वी,
सूर्य (क्षर)
ब्रह्म नाद
कछुआ 🐢 (जीभ) व पर्वत 🗻 (गले में ऊपर लटकती हुई घंटी, जो लिंग जैसी लटकती है) व कुंडलिनी सांप 🐍 (जो समुद्र मंथन व खेचड़ी क्रिया , नीलकंठ गला योग) को दर्शाते हैं।


ब्रह्म प्रकाश

मकर (मगरमच्छ) 🐊 जो जल की देवी अपा, जल की देवी गंगा माता, और जल के देवता वरुण, तीनों की सवारी है ; पूर्व शाढा़ नक्षत्र को दर्शाते हैं।



हाथी 🐘 जो वैदिक (ऋग्वेद में वर्णित) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र दर्शाते हैं; शेर जो वैदिक काल में उत्तरा आषाढा नक्षत्र को दर्शाते थे।



गरुड़, 🦅 ईगल नेबुला जो सरपेंटाइन कांस्टेलेशन का हिस्सा है, और जिसके साथ मेरु पर्वत जैसी (स्पेस डस्ट की) एक रचना है।

वासुकी (बासुकी, ग्रीक भाषा में) सांप 🐍, सरपेंटाइन कांस्टेलेशन (आधुनिक अंतरिक्ष वैज्ञानिक नाम)
अमृत का कल्श; पुष्पदीप से घिरा (डार्क मैटर)अमृत सागर से अमृत


जंबूद्वीप व पुष्कर द्वीप, दोनों, ग्रेटर ट्रेक्टर की धुरी पर चक्कर लगाते हुए।
विष्णु सवार ; एंटीमैटर और मैटर प्रलय
ब्रह्मपुर
(शाश्वत स्थान; स्ट्रेंज मैटर; ) मे अलग-अलग स्थान;

क्षीर सागर में, शेषनाग पर बैठे , माता लक्ष्मी व हरि नारायण;
गोलोक में हरि कृष्ण व माता सत्यभामा;
बैकुंठ में हरि राम व माता सीता;
बद्रिका आश्रम में हरि नर व नारायण;
श्वेत द्वीप में हरि वासुदेव आदि।
Mantra revelations
पहली स्थिति
एक खास सूर्य, चंद्र व ग्रहों की स्थिति में जीव का जन्म । जीव इस स्थिति को ब्रह्मनाद व ब्रह्म प्रकाश से बदल सकता है।
भूलोक =पृथ्वी
भूवर्लोक=चंद्र
स्वर्लोक
(बाकी के ग्रह)आंखों से केवल 5 (ग्रहों का देख पाना ।नेपच्यून व प्लूटो आंखों से नहीं दिखते। कुछ लोग नेपच्यून व प्लूटो को राहु व केतु का दर्जा देते हैं। हालांकि राहु और केतु हर ग्रह मे निहित है। हर एक ग्रह की राहु व केतु गति किसी एक निर्धारित बिंदु या धुरी के करीब या उससे दूर जाने की गति को कहा जा सकता है।
दूसरी स्थिति
(क्षर) सुषुप्ति द्वारा चंद्रमा की दशा का बदलाव
महर लोक (सूर्य मंडल सब ग्रहों का ज्ञान) जीव दर्शन की स्थिति,
तीसरी स्थिति
(अक्षर) शरीर में ब्रह्म नाद चलने से सूर्य दशा का बदलाव
ज्ञानलोक (एक जंबूद्वीप , आकाशगंगा ,ब्रह्मांड या गैलेक्सी) एक ब्लैक होल की धुरी पर सब तारों का ज्ञान। विराट दर्शन की स्थिति।
चौथी स्थिति (परा) ब्रह्म प्रकाश का धीरे-धीरे धारण से काल का बदलाव
तपलोक (नाना गैलेक्सी; जंबूद्वीप, पुष्काद्वीप आदि)नाना प्रकार के ब्लैक होल; एक ग्रेट अटरैक्टर (काल) की धुरी पर सब ब्रह्मांण्डों का ज्ञान। विश्व दर्शन की स्थिति
परात्पर, अवधूत,महाकाल, ब्रह्म स्वरूप में स्थिति व काल से छुटकारा।
पांचवी स्थिति (ब्रह्म स्वरूप)जीते जी
सतलोक ( नाना प्रकार के 14 ग्रेट अटरैक्टर; जॉइंट अटरैक्टर की धुरी पर) मैटर एंटीमैटर विष्णु प्रलय, निर्वाण से पहले जगत दर्शन की स्थिति
पांचवी स्थिति (ब्रह्म स्वरूप) निर्वाण के बाद
दिव्यलोक /ब्रह्मलोक/ गुणातीत (स्ट्रेंज मैटर्स व 24,000 जॉइंट अटरेक्टर ) हरि निर्वाण सृष्टि दर्शन की स्थिति। अकाल में स्थिति।
ब्रह्म नाद ,ब्रह्म प्रकाश व ब्रह्मधाम की दिशा दर्शन
























You must be logged in to post a comment.